बेशक दुनिया चांद पर बसने की तैयारी कर रही हो, लेकिन बांका जैसे जिलों में तो अब भी अंधविश्वास का अंधेरा कायम है। अंधविश्वास से जुड़ी एक विचित्र परंपरा बिहार के इस इलाके में सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा है चोरों को दंड देने के लिए वृक्षों से फरियाद की। चोरी की घटनाओं को दर्ज करने व सुलझाने में पुलिस की उदासीनता से इसे बढ़ावा मिल रहा है। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के 75 फीसदी लोग अब भी घरों अथवा अन्य कहीं चोरी की वारदात की पुलिस में रिपोर्ट करना जरूरी नहीं समझते। उन्हें पुलिस से ज्यादा भरोसा उन वृक्षों पर है, जिन्हें वह चोरों को दंडित करने वाला मानते हैं। ईंट या पत्थर के टुकड़े को साफ कर उसमें सिंदूर आदि लगाकर पूरी श्रद्धा से रस्सी के सहारे इन वृक्षों पर लटका दिया जाता है। ग्रामीणों के अनुसार इसके साथ चोरी के मामले की प्राथमिकी भगवान के पास दर्ज हो जाती है। गांव में बाकायदा इसकी सूचना भी सार्वजनिक कर दी जाती है कि फलां स्थान में उसने अपने सामान की चोरी होने की ईट बांधी है। मान्यता के अनुसार चोरी का सामान वापस नहीं मिलने पर एक दिन पेड़ से बांधी गई ईट जमीन पर गिर जाती है। माना जाता है कि जिस दिन ईट नीचे गिरती है उसी दिन चोर को भगवान कोई बड़ा दंड देता है। पता चला है कि कुछ चोर ईट बांधे जाने की सूचना मिलने पर चोरी का सामान किसी बहाने लौटा भी देते हैं। बांका में करीब पांच दर्जन से अधिक देवी स्थानों पर पीपल, खजूर, पाकड़, गुलर आदि के ऐसे पेड़ ईट-पत्थरों से लदे हुए हैं। भगवान के दरबार में भी सुनवाई होने में देरी के कारण एक-एक पेड़ से सैंकड़ों की संख्या में ईंट बंधे होने का नजारा आपको दिख जाएगा। ग्रामीण जय मंगल यादव व सुरेश सिंह कहते हैं कि कोई माने न माने, यह परंपरा फलदायी है। वे तर्क देते हैं कि पुलिस शायद ही कभी किसी चोर को पकड़ पाती है। पकड़ भी लेती है तो सामान तो नहीं ही बरामद होता है। लेकिन इस परंपरा के कारण यदा-कदा चोर सामान वापस तो कर देते हैं।
पुलिस की कार्यशैली है जिम्मेदारबहरहाल, गांवों में फल-फूल रही यह परंपरा कहीं न कहीं पुलिस की कार्यशैली पर भी एक सवाल है। पुलिस द्वारा छोटी-मोटी चोरी की घटनाओं को दर्ज करने में आनाकानी लोगों को इस अंधविश्वास की ओर धकेल रही है।
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