शास्त्रों में प्रसंग है कि अपनी क्रूर और टेढ़ी नजर से देव-दानव, मानव सभी को आहत करने वाले शनि परम तपस्वी और योगी मुनि पिप्पलाद की दिव्य और तेजोमयी नजरों का सामना नहीं कर पाएं। शनि स्वयं मुनि पिप्पलाद की दृष्टि से धराशायी होने पर विकंलाग हो गए। शनि को पीडि़त देखकर ब्रह्मदेव ने मुनि पिप्पलाद को मनाया। तब मुनि ने शनिदेव को कष्टों से छुटकारा दिया। साथ ही देवताओं के कहने पर शनि पीड़ा से बचाव व मुक्ति के लिए शनि मंत्रों और स्त्रोतों की रचना की। मुनि पिप्पलाद द्वारा रचे गऐ इन मंत्रों और स्त्रोत का पाठ शनिवार, मंगलवार, अमावस्या, शनि जयंती के साथ ही शनि की साढ़े साती, महादशा और ढैय्या में करना शनि ग्रह के अशुभ असर या कोप से बचाकर शुभ फल देती है।
यहां जानते हैं इनमें से ही एक शनि स्तुति, जिसका पाठ खासतौर पर साढ़े साती के विपरीत परिणामों से रक्षा करता है। इसका यथासंभव 11 बार पाठ करना शनि पीड़ा शांति के लिए प्रभावी माना गया है।
नमस्ते कोणसंस्थय पिङ्गलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते॥
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥
नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥
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