Monday, December 27, 2010

एक शूटआउट के लिए जिंदगी भर पेमेंट


मुंबई,शूटरों को सुपारी अर्से से मिलती रही है, इसमें कोई नई बात नहीं है, पर चांद मदार मर्डर केस में मोहम्मद अली ने शूटरों को कत्ल से पहले ही आजीवन मंथली पेमेंट का वायदा किया था। मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस मामले में पिछले पखवाड़े जो चार्जशीट दाखिल की है, उसकी एक ट्रांसक्रिप्ट में इसका बाकायदा जिक्र है।चांद मदार पर 15 सितंबर को गोलियां चलाई गईं थी। 16 सितंबर को उसने दम तोड़ दिया था। इस शूटआउट के लिए शाहिद शा और सागिर अहमद नामक शूटर झारखंड के पलामू नामक शहर से बुलाए गए थे। शूटरों को मुंबई बुलाने वालों में वडाला के अब्दुल मुजीब खान उर्फ बबलू की मुख्य भूमिका थी। क्राइम ब्रांच सूत्रों का दावा है कि शूटआउट से पहले शूटरों को मोहम्मद अली से भी बाकायदा मिलवाया गया था। मोहम्मद अली ने चांद मदार के मर्डर के लिए शूटरों को एक मोटी रकम देने का वायदा किया था। साथ ही उनसे यह वायदा भी किया था कि इस शूटआउट के बदले में उन्हें प्रतिमाह एक फिक्स रकम आजीवन मिलती रहेगी। इसलिए जब चांद मदार पर गोली चलाने के अगले दिन दोनों शूटर मुंबई से ट्रेन में बैठकर झारखंड जा रहे थे, तो इन शूटरों में से एक सागिर ने वडाला के अपने साथी बबलू को इस बात के लिए याद दिलाया था कि उसे और उसके साथी को आजीवन मंथली पेमेंट मिलती रहे, जैसा कि उनसे वायदा किया गया था। मुंबई क्राइम ब्रांच ने इस बातचीत को टेप कर लिया और फिर ट्रांसक्रिप्ट के रूप में अदालत में पेश कर दिया। सगीर अहमद और उसके साथी शाहिद शा को बाद में सीनियर इंस्पेक्टर अरुण चव्हाण व नंद कुमार गोपाले ने मुगलसराय में मेल ट्रेन में गिरफ्तार किया था।
क्राइम ब्रांच सूत्रों का कहना है कि शूटरों को चांद मदार के कत्ल के लिए जितनी रकम देने का वायदा किया गया था, उन्हें उसका आधा ही मिला। इसकी मूल वजह यह रही कि 15 सितंबर को चली गोलीबारी में चांद मदार बुरी तरह घायल तो हुआ, पर उस दिन उसकी मौत नहीं हुई। अगले दिन जिस वक्त शूटरों को पेमेंट हुआ, तब तक चांद जिंदा था, इसलिए शूटरों को आधा पेमेंट मिला। जब तक चांद मदार की मौत हुई, तब तक शूटर मुंबई से निकल चुके थे। उन्हें ट्रेन में रास्ते में जब चांद की मौत की खबर मिली, उसी के बाद दो शूटरों में से एक सगीर ने आजीवन पेमेंट की बात की बबलू को गंभीरता से याद दिलाई। अगर दोनों शूटरों और इस शूटआउट के साजिशकर्ता कभी पकड़े नहीं जाते, तो शूटरों को शायद सुपारी का फुल पेमेंट भी मिलता और आजीवन सैलरी भी, लेकिन शूटर शायद यह भूल गए कि जो लोग काला काम करते हैं, वो आजीवन बचते नहीं है, बल्कि कभी न कभी पकड़े ही जाते हैं।

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