कहते हैं हिम्मते मरदां, मदद-ए-खुदा यानी भगवान उन्हीं की सहायता करता है जो साहसी होते हैं। अपने जब्बे से इसे चरितार्थ कर दिखाया है लीक से हटकर कुछ अलग करने वालों में से एक तिब्बत के लोटेबेसेफ बाबू ने।इस अजब बाबू के जूनून की गजब कहानी है। पिछले चार साल से वे दंडवत करते हुए विश्व में शांति-सद्भाव और प्रेम से लोगों को जोड़ने की यात्रा पर निकले हैं। शनिवार को वे तथागत की ज्ञान नगरी बोधगया गया में थे। अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए शुक्रवार को वे गया शहर के पितामहेश्र्र्वर मोहल्ले से दिन के 11 बजे गुजरे। सड़क किनारे फैली गंदगी और टूटी सड़कों पर श्रद्धा के साथ दंडवत मुद्रा में वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते गए। उनके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि की अलौकिक आभा दमक रही थी। जिसमें देर शाम बोधगया पहुंचने पर और निखार आ गया। बोधगया की सीमा में पहुंचने के बाद बिना रुके महाबोधि मंदिर में प्रवेश करके ही उन्होंने दम लिया। देररात तक महाबोधि मंदिर में भगवान बुद्ध के समक्ष घंटों ध्यान लगाया। चार साल में वे अपने हर दंडवत में बुद्धं शरणं गच्छामि के भावों को आत्मसात करते हुए आए हैं। उनके साथ नेपाल का एक युवक लापसांग भी है। जो दुर्गम घाटियों, नदियों, पहाड़ों के रास्ते में बाबू के पीछे-पीछे चल रहा है। एक हाथ से गाड़ी में रखी दैनिक इस्तेमाल की वस्तुएं को खींचते हुए उसने यात्रा में बाबू का बखूबी साथ निभाया। लापसांग टूटी-फूटी हिंदी में बताता है कि लोटेबेसेफ चार साल पहले तिब्बत से दंडवत करते हुए तथागत की ज्ञान नगरी बोधगया के लिए निकले थे। विश्व में शांति-सद्भाव एवं आपसी प्रेम के लिए वे कई वर्षो से कुछ न कुछ करते आ रहे हैं। इनका एक ही मकसद है-दुनियाभर के लोगों को जागरूक करना और बुद्ध के संदेशों से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना।
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