Wednesday, February 2, 2011

अमेरिका में मचा है खटमलों का तांडव


कमले कमला शेते, हर: शेते हिमालया। क्षीराब्धौ च विष्णु शेते मन्ये मत्कुण शंकया यानी लक्ष्मीजी का कमल के पुष्प पर, शंकरजी का हिमालय पर और विष्णु भगवान का क्षीरसागर में निवास करना भले ही परिहास का विषय बनता हो कि मानो इन देवताओं को खटमलों का भय सताता है, लेकिन अमेरिका में आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है। लोग खटमलों के प्रकोप से नींद नहीं ले पा रहे हैं।हालात यह हैं कि दुनिया के इस सबसे ताकतवर देश को खटमलों के खतरे से निपटने के लिए आपात बैठक बुलानी पड़ रही है। वाशिंगटन में 300 लोगों का एक सम्मेलन हो रहा है जिसमें खटमलों के बढ़ते प्रकोप पर काबू करने के तरीकों पर चर्चा की जा रही है। इस सम्मेलन में कीट नियंत्रकों, विशेषज्ञों के साथ अमेरिकी सांसद भी शामिल हैं।पचास साल पहले अमेरिका में इन खटमलों को पूरी तरह समाप्त किया जा चुका था, लेकिन हाल के साल में इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। एक अध्ययन के मुताबिक अमेरिका के 80 फीसदी परिवार इस समस्या से पीड़ित हैं। 72 फीसदी अपार्टमेंट्स, 58 फीसदी होटल, 24 फीसदी कॉलेज और 18 फीसदी नर्सिगहोम इन कीटों के दायरे में आ चुके हैं। यहीं नहीं, 17 फीसदी आश्रयगृह एवं हॉस्टल, छह फीसदी अस्पताल, पांच फीसदी प्राथमिक स्कूल, चार फीसदी जन यातायात, तीन फीसदी लांड्री सेवा और दो फीसदी थियेटर भी इनके प्रकोप से पीड़ित हैं।वहां के लोगों की परेशानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आनन-फानन में पर्यावरण की देखरेख करने वाली पर्यावरण संरक्षण संस्था को खटमलों पर रोकथाम के लिए यह सम्मेलन आयोजित करना पड़ा। एक ओर जहां अमेरिका में खटमलों को बड़ा खतरा मानते हुए प्रशासन की चौकसी देखने लायक है वहीं हमारे यहां पहली बात तो, इसे खतरा माना ही नहीं जाता है। यहां ग्रामीण क्षेत्रों के घरों की चारपाईयों में इनका पाया जाना आम बात होती है। लोग खुद ब खुद भले ही इनसे निपटने के लिए कुछ इंतजाम कर लें, प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगती।अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण संस्था का कहना है कि खटमलों की बढ़ती संख्या की खबर हर प्रदेश से आ रही है। इनके प्रकोप से सबसे ज्यादा पीड़ित न्यूयार्कवासी हैं। कीटनाशकों का असर कम होने के चलते इन पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है। अमेरिका के कई राज्य तो इन विनाशकारी कीटों से निपटने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को नौकरियां दे रहे हैं। वहां इस पूरी लड़ाई में काफी धन खर्च किया जा रहा है। कीट नियंत्रकों का कहना है कि बिस्तर में पाए जाने वाले खटमलों पर एक दवाई का इस्तेमाल बार-बार नहीं किया जा सकता है।

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