दक्षिणी मिस्र में नूबिया के अबू सिंबल इलाके के पहाड़ों में बने हैं ये दो विशाल मंदिर। 13वीं सदी ईसापूर्व में फैरो रामेसेस द्वितीय ने इन्हें बनवाया था। कादेश का युद्ध जीतने के बाद उन्होंने पहाड़ों को तराशकर अपना और अपनी रानी नेफरटारी का ये स्मारक बनवाए थे। इसे भव्य बनाने के लिए वे अपनी पूरी जिंदगी काम करवाते रहे।सवाल यह उठता है कि रेगिस्तान से घिरे बेहद कम आबादी वाले इलाके में उन्होंने ये स्मारक क्यों बनवाए। क्या वे फैरो नूबिया की जनता को या फिर दक्षिण से आने वाले दुश्मनों को प्रभावित करना चाहते थे। ऐसा भी हो सकता है कि ये मंदिर इलाके में अपने धर्म का रुतबा दिखाने के लिए बनवाए गए थे।बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि फैरो रामेसेस द्वितीय महत्वाकांक्षी थे और अपनी शान दिखाने के लिए उन्होंने ये मंदिर बनवाए थे। इसके पीछे उनका जो भी मकसद रहा हो, वो अब राज ही रहेगा। कारण जो भी रहा हो, ये मंदिर वहां काफी महत्व रखते हैं और रामेसेस की रहस्यमयी ताकत का अंदाजा इसे देखकर लगाया जा सकता है।1959 में वहां नाइल नदी पर असवान बांध बनाने का फैसला किया गया था। बांध बनने के बाद ये स्मारक नासेर झील में जलमग्न हो जाते, इसलिए इन्हें बचाने के तरीकों पर विचार किया गया। 1962 में आर्किटेक्ट जेन ड्रिउ, मैक्सवेल फ्राय और सिविल इंजीनियर ओव अरुप ने इसकी ऊंचाई बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था, जो नामंजूर हो गया था। इसके बाद 1964 में नया प्लान बना और मंदिर को बेहद सफाई से काटने का काम शुरू किया गया। 1964 से 1968 के बीच इन पहाड़ों को काटकर नदी से 200 मीटर पीछे और 65 मीटर अधिक ऊंचाई पर स्थापित किए गए। इस काम में उस समय 4 करोड़ डॉलर खर्च आया था।राज है गहरा-फैरो रामेसेस द्वितीय ने मिस्र के कम आबादी वाले रेगिस्तानी इलाके में अबू सिंबल के मंदिर क्यों बनवाए थे। क्या वे जनता को या फिर दक्षिण से आने वाले दुश्मनों को प्रभावित करना चाहते थे, ये आज तक राज है।
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