अफगानिस्तान में शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश होता है। लोगों के आराम का दिन, लेकिन कुत्तों के लिए यही दिन कुछ कर दिखाने का होता है। बात ये है कि अफगानिस्तान में सर्दियों के मौसम में हर शुक्रवार को कुत्तों की लड़ाई की प्रतियोगिता होती है, जिसे देखने के लिए भारी संख्या में दर्शक जमा होते हैं। इन दिनों यह मुकाबले अपने शबाब पर हैं।
इन मुकाबलों में लोग अपने कुत्तों को मैदान में उतारते हैं, जिन पर बड़ी संख्या में सट्टेबाजी भी होती है। प्रतियोगिता आरंभ करने के लिए दो कुत्तों को मैदान में आमने-सामने उतारा जाता है, फिर एक हरे रंग के कपड़े को उनके बीच गिरा कर लड़ने का इशारा कर दिया जाता है। कपड़ा गिरते ही प्रतियोगी एक-दूसरे पर टूट पड़ते हैं। सट्टा जोर पकड़ता है और विजेता की कीमत आसमान छूने लगती है। एक अच्छे लड़ाके कुत्ते की कीमत एक नई कार जितनी भी हो सकती है।
तालिबानी हुकूमत इसे गैर-इस्लामी मानती थी। कई बार तालिबान ने इस खेल को बंद करवाने की कोशिश भी की। फरवरी 2008 में कंधार में खेल के दौरान हुए एक आत्मघाती हमले में 80 से ज्यादा लोगों की जान गई थी जबकि 90 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।तालिबान के हाशिये पर जाने के बाद इस खेल की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। 22 वर्षीय दर्शक सैयद जान मोहम्मद का कहना है कि शुक्रवार को छुट्टी के कारण हमारे पास काम नहीं होता इसीलिए हम यहां जमा होते हैं और खेल का मजा लेते हैं।हालांकि शिक्षित और शिष्ट अफगानी नागरिक इस खेल को दकियानूसी मानते हैं। प्राइड टू एथनिक तजिक डॉग फाईटिंग एनथुजियस्ट के सूत्रों के अनुसार, पूर्व मुजाहीदीन कमांडर और अफगानिस्तान के उप राष्ट्रपति मार्शल मोहम्मद कासिम फहीम के भाई को सबसे अच्छी नस्ल के लड़ाकू कुत्ते रखने और पिछले साल के काबुल चैंपियन होने का श्रेय है।
काबुल में प्रतियोगिता के एक आयोजक के अनुसार, बड़े और महंगे खेल निजी स्थानों पर होते हैं, जहां कुत्तों के रख रखाव पर इतना खर्च किया जाता है, जितना एक आम अफगानी नागरिक पूरे महीनें में नहीं कमा सकता।
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