विकासनगर [उत्तराखंड], [वीरेंद्र दत्त गैरोला]। वह कृष्ण तो नहीं, लेकिन है कृष्ण सरीखा। द्वापर में जैसे कृष्ण की बांसुरी सुन गायें उनके पास शांत भाव में खड़ी हो जाती थीं। वैसे ही विनयराज नेगी की गोशाला में गायें संगीत सुनने के बाद आसानी से दूध देती हैं। यही नहीं गोशाला में पशुपालन प्रबंधन भी ऐसा कि अब यह पशुपालकों के लिए पाठशाला बन चुकी है।
आज जब लोग पशुपालन से विमुख हो रहे हैं, तब देहरादून में विकासनगर विकासखंड के गांव सोरणा निवासी विनयराज नेगी की गोशाला उन लोगों के लिए एक मिसाल है, जो सोचते हैं कि गांव में रहकर जीवन को दिशा नहीं मिल सकती। गोशाला का नाम है भारत गोशाला। विनयराज ने वर्ष 1998 में चार गायों से गोपालन शुरू किया था। इस समय उनकी गोशाला में सिंधी सहवाल, सहवाल जर्सी और क्रास बीड एचएफ नस्ल की 55 गायें हैं। गोपालन में पूरी तरह वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया है। गोशाला में गायों के लिए अलग-अलग वार्ड हैं। दूध देने वाली गायों के लिए दुधारू वार्ड, बछड़ों के लिए शैशव वार्ड, गर्भवती गायों के लिए गर्भावस्था वार्ड और गायों के प्रसव के लिए प्रसव वार्ड की व्यवस्था की गई है। और तो और यहां गायों के बच्चों के विचरण के लिए शिशु पार्क भी है। गोशाला का निर्माण भी वास्तुशास्त्र के हिसाब से किया गया है। इसमें ऐसी व्यवस्था है कि गायों को बांधते समय उनका मुंह उत्तर या पूर्व दिशा में रहे। इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से गाय स्वस्थ रहती हैं। दूध ठीक से देती हैं और बुरी नजर से बची रहती हैं। गायों को थनैला रोग से बचाने के लिए फर्श पर खास इंतजाम किए गए हैं। गोशाला में फर्श पर रेत बिछाई गई है। इससे गाय के थन को रगड़ नहीं लगती। साथ ही दूसरी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है।
विनयराज बताते हैं कि गोशाला में संगीत की व्यवस्था की गई है। जिसके शुरू होते ही गाय शांत भाव से खड़ी हो जाती है और आसानी से दूध निकालने देती हैं। गर्मियों में गायों को रोजाना और सर्दियों में तीसरे-चौथे दिन नहलाने की व्यवस्था है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के पशुपालकों समेत पशुपालन विभाग के लोग भी गोपालन के गुर सीखने यहां आ रहे हैं। आत्मा परियोजना के तहत वर्ष 2008-09 में किसान भूषण से नवाजे जा चुके विनयराज ने इस गोशाला के माध्यम से डेढ़ दर्जन बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी दिया है।
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