व्यक्ति के जीवन में सुख-दु:ख, धूप-छांव की तरह आते रहते हैं। इस ब्रह्माण्ड में शायद ही कोई ऐसा विरला हो जो पूर्णरूप से अपने आप को सुखी कह सकता हो। कहने का तात्पर्य यही है कि सुख-दु:ख मनुष्य जीवन के अभिन्य अंग बन चुके हैं। लेकिन कई ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो दु:ख में भी सुख को खोज लेते हैं।
बस अपने अंतर्मन में आशावादी दृष्टिकोण रखना चाहिए, जीवन में दु:खों के आने के बाद भी दिल दु:खी नहीं रहेगा।
एक व्यापारी को व्यापार में एक लाख का घाटा हुआ। वह इसी चिन्ता में दिन-रात बेचैन रहने लगा। उसकी पत्नी समझदार थी। वह अपने पति को दिन-रात समझाती कि आपको एक लाख का घाटा नहीं बल्कि फायदा ही हुआ है।
लेकिन व्यापारी अपने दु:ख से परेशान हो उसकी कोई बात नहीं सुनता था। तब व्यापारी की पत्नी को एक उपाय सूझा। वह अपने पति को लेकर एक बहुत पहुंचे हुये संत के पास गई।
संत ने उस आदमी से उसकी तकलीफ को पूछा तो उसने दु:खी मन से सब कह सुनाया। जब संत ने उसकी पूरी बात सुन ली तब उन्होंने उसकी पत्नी से भी यही प्रश्र किया। पर व्यापारी की पत्नी ने ऐसी किसी भी अनहोनी से इनकार कर दिया। अब संत भी आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने व्यापारी की पत्नी से सब बात ठीक-ठीक बताने को कहा। व्यापारी की पत्नी ने संयत होते हुए कहा कि महाराज दरअसल मेरे पति को व्यापार में दो लाख के फायदे का अनुमान था पर कुल फायदा हुआ एक लाख रुपये का। इसलिए ये दु:खी हैं जबकि इन्होंने यह तो सोचा ही नहीं कि जहां पूरे दो लाख का नुकसान हो सकता था वहीं एक लाख का फायदा तो हुआ।
व्यापारी की पत्नी की बात सुनकर संत बड़े प्रसन्न हुये और उन्होंने व्यापारी से कहा कि जो दु:ख में भी सुख को खोज लेने की बुद्धि रखते हैं वे कभी दिल छोटा नहीं करते। उन्हें कठिन से कठिन दु:ख-तकलीफ भी कमजोर नहीं कर सकती।
संत की बातें सुनकर व्यापारी को ढ़ांढस बंधा, साथ ही उसे अपनी पत्नी की बुद्धि पर भी गर्व महसूस हुआ।
कहानी का तात्पर्य यही है कि जो लोग दु:ख में भी सुख या प्रसन्न होने का अवसर ढ़ूढ़ लेते हैं, वे कभी जीवन में दु:ख का रोना नहीं रोया करते। अत: हमें दु:ख में भी घबराने की बजाय उसमें अपने लिए सकारात्मकता को खोजना चाहिए क्योंकि तभी हम खुशी से रह सकते हैं।
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