वॉशिंगटन
(एजेंसी)। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसी कृत्रिम आँख बनाने का दावा किया
है, जो सोलर पैनल की तरह रोशनी से चार्ज होगी। वैज्ञानिक इससे पहले भी एक
ऐसी कृत्रिम आँख बना चुके हैं। इसको बैटरी से चार्ज करना पड़ता है। इस तरह
की कृत्रिम आँख में रेटिना को प्रत्यारोपित करके मरीज को दृष्टि प्रदान की
जाती है।
अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्र्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नई आँख का विवरण "नेचर फोटोनिक्स पत्रिका" में प्रकाशित किया गया है। इस नई आँख में विशेष प्रकार के शीशों की जोड़ी का इस्तेमाल किया गया है। इन शीशों के इस्तेमाल से इन्फ्रारेड किरणों के बराबर वाली रोशनी को आँखों में भेजा जाता है। इससे प्रत्यारोपित रेटिना को ऊर्जा मिलती हे और वह ऐसी सूचनाओं का संचारण करता है जिनसे कि मरीज देख सके। बढ़ती उम्र के साथ आँख को रोशनी प्रदान करने वाली कोशिकाएँ मरने लगती हैं और आगे चलकर यही लक्षण अंधेपन में बदल जाता है। इस कृत्रिम रेटिना में आँखों के पीछे की नसें उत्तेजित होती हैं जिनसे कई बार मरीजों को लाभ मिलता है। ब्रिटेन में पहले ऐसे कृत्रिम रेटिना के प्रारंभिक परीक्षण किए गए थे। प्रारंभिक दौर में रेटिना के पीछे एक चिप लगाने के साथ-साथ कान के पीछे एक बैटरी लगानी होती थी और दोनों को एक तार से जोड़ना पड़ता था।
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका ये परीक्षण बैटरी की जटिलता को दूर करने का एक प्रयास है। इस उपाय में प्रतिरोपित रेटिना सौर पैनल की तरह काम करती है। इसके बाद वीडियो कैमरे से जुड़े दो शीशे आँख के सामने होने वाली सभी चीजों को रिकॉर्ड करते हैं और उन्हें इन्फ्रारेड के समान किरणों में बदलकर रेटिना पर फेंकते हैं। हालाँकि अभी इस क्षेत्र में और भी परीक्षण किए जाने बाकी है लेकिन चूहों पर यह सफल रहा है।
अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्र्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस नई आँख का विवरण "नेचर फोटोनिक्स पत्रिका" में प्रकाशित किया गया है। इस नई आँख में विशेष प्रकार के शीशों की जोड़ी का इस्तेमाल किया गया है। इन शीशों के इस्तेमाल से इन्फ्रारेड किरणों के बराबर वाली रोशनी को आँखों में भेजा जाता है। इससे प्रत्यारोपित रेटिना को ऊर्जा मिलती हे और वह ऐसी सूचनाओं का संचारण करता है जिनसे कि मरीज देख सके। बढ़ती उम्र के साथ आँख को रोशनी प्रदान करने वाली कोशिकाएँ मरने लगती हैं और आगे चलकर यही लक्षण अंधेपन में बदल जाता है। इस कृत्रिम रेटिना में आँखों के पीछे की नसें उत्तेजित होती हैं जिनसे कई बार मरीजों को लाभ मिलता है। ब्रिटेन में पहले ऐसे कृत्रिम रेटिना के प्रारंभिक परीक्षण किए गए थे। प्रारंभिक दौर में रेटिना के पीछे एक चिप लगाने के साथ-साथ कान के पीछे एक बैटरी लगानी होती थी और दोनों को एक तार से जोड़ना पड़ता था।
स्टैनफोर्ड के वैज्ञानिकों का कहना है कि उनका ये परीक्षण बैटरी की जटिलता को दूर करने का एक प्रयास है। इस उपाय में प्रतिरोपित रेटिना सौर पैनल की तरह काम करती है। इसके बाद वीडियो कैमरे से जुड़े दो शीशे आँख के सामने होने वाली सभी चीजों को रिकॉर्ड करते हैं और उन्हें इन्फ्रारेड के समान किरणों में बदलकर रेटिना पर फेंकते हैं। हालाँकि अभी इस क्षेत्र में और भी परीक्षण किए जाने बाकी है लेकिन चूहों पर यह सफल रहा है।
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