न्यूज़ एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट से ख़ुलासा हुआ है कि अमेरिका में मेडिकल रिसर्च के लिए दान दिए जाने वाले शवों का इस्तेमाल गैर कानूनी तरीके से सैन्य परीक्षणों में किया जाता है। एक ऐसा ही मामला सामने आने के बाद रायटर की टीम ने पूरे मामले की पड़ताल की तो सामने आया कि कुल 34 शवों का गलत तरीके से सैन्य परीक्षणों में इस्तेमाल किया गया है।
मेडिकल रिसर्च के लिए दान की थी बॉडी
जिम स्टौफ़्फ़ेर नाम के एक शख्स की मां डोरिस की मौत 2013 में 74 साल की उम्र में अल्जाइमर बीमारी से हुई। उसने अपनी मां के शरीर को मेडिकल रिसर्च के लिए दान देने का फैसला किया। उसे उम्मीद थी कि उसकी मां के शरीर पर परीक्षण कर अल्जाइमर रोग के इलाज की खोज हो पाएगी। एक नर्स के सुझाव पर उसने शरीर दान के लिए एक ब्रोकर कंपनी से संपर्क किया। बीआरसी नाम की कंपनी से फोन पर बात करने के बाद आधे घंटे के अंदर ही उनकी एक गाड़ी शव को लेने के लिए पहुंच गई। जिम स्टौफ़्फ़ेर ने सारे कागजात पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने सैन्य, यातायात सुरक्षा और अन्य गैर चिकित्सा प्रयोगों पर रोक लगाने के लिए बने एक कॉलम में टिक भी किया। 10 दिन बाद जब कंपनी के तरफ से जिम को इनकी मां के अंतिम संस्कार के बारे में जानकारी भेजी गई तो उन्हें ये नहीं बताया गया कि उनकी मां के शरीर का इस्तेमाल किस रिसर्च में हुआ।
बम की क्षमता जांचने के लिए किया इस्तेमाल
रायटर की रिपोर्ट की मानें तो जिम के मां डोरिस के शरीर का इस्तेमाल अल्जाइमर रोक के लिए हुआ ही नहीं। उनके शरीर को बीआरसी कंपनी ने अमेरीकी सेना के परीक्षण कार्य के लिए भेज दिया और अमेरिकी सेना ने उस शरीर का इस्तेमाल सड़क के किनारे बम ब्लास्ट में होने वाले नुक्सान को मापने के लिए किया।
बीआरसी और सेना की रिपोर्ट बताते हैं कि अब तक 20 से ज्यादा शवों का बिना इजाजत के सैन्य परीक्षणों के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है।
सेना ने दी सफाई
अमेरिकी सेना के तरफ से इस पूरे मामले पर सफाई देते हुए कहा गया है कि उन्हें कभी भी कोई फार्म नहीं मिलता है जिसपर ये लिखा हो कि उनके परिजन शव पर सैन्य परीक्षण नहीं करवाना चाहते। सेना को बीआरसी कंपनी की तरफ से बताया जाता है कि शव के परिजनों ने सैन्य परीक्षण के लिए इजाजत दे दी है। जिसके बाद ऐसे टेस्ट किए जाते हैं।
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